भूमि आवंटन पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- जज, जनप्रतिनिधि, अफसर या पत्रकार को अलग श्रेणी में नहीं मान सकते
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के न्यायाधीशों, सांसदों, विधायकों, अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों, पत्रकारों को रियायती मूल्य पर भूमि आवंटन के लिए अन्य की तुलना में अलग श्रेणी में नहीं माना जा सकता। शीर्ष अदालत ने संयुक्त आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा 2005 में जारी किए गए उन आदेशों को रद्द कर दिया, जिसमें सांसदों, विधायकों, अखिल भारतीय सेवा/राज्य सरकार के अधिकारियों, सांविधानिक न्यायालयों के न्यायाधीशों और पत्रकारों को एक अलग वर्ग के रूप में मानते हुए रियायती दर पर भूमि आवंटित करने का आदेश दिया गया था। सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा, नीति का उद्देश्य असमानता को कायम रखना है। नीति भेदभाव का सहारा लेकर एक लाभ प्राप्त वर्ग या समूह को अलग करती है और उदारता प्रदान करती है।
आवंटन नीति मनमानी... पीठ ने कहा, आवंटन नीति मनमानी के साथ-साथ दो-आयामी वर्गीकरण परीक्षण की आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रही है। पीठ ने महसूस किया कि विचाराधीन नीतियां यह दिखाने के लिए एक प्रासंगिक उदाहरण हैं कि केवल समान लोगों के साथ समान व्यवहार करने से अन्याय हो सकता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के तहत राज्य के विवेक और कर्तव्य को स्वीकार किया ताकि वह अपने संसाधनों को समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों या अन्य योग्य व्यक्तियों को उनके सार्वजनिक कार्यों के निर्वहन के लिए आवश्यक सीमा तक वितरित कर सके।
संविधान के मानकों को पूरा नहीं करती नीति
कोर्ट ने कहा कि नीति अधिक योग्य लोगों के साथ-साथ समान स्थिति वाले लोगों को भी समान कीमत पर भूमि तक पहुंच से रोकती है। यह एक छोटे और विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग या समूह को लाभ पहुंचाने के लिए सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार को बढ़ावा देती है। नीति संविधान द्वारा निर्धारित समानता और निष्पक्षता के मानकों को पूरा नहीं करती है।
राष्ट्र की प्रगति में योगदान देने वालों को दे सकते हैं मुआवजा
कोर्ट ने कहा कि खेल या अन्य सार्वजनिक गतिविधियों में उत्कृष्टता के माध्यम से राष्ट्र की प्रगति में योगदान देने वाले व्यक्तियों को राज्य के उदारता के उचित और गैर- मनमाने वितरण के माध्यम से भी मुआवजा दिया जा सकता है। पीठ ने अपने आदेश में कहा है, हम यह भी स्पष्ट करना चाहेंगे कि लोक सेवकों को भूमि आवंटित करने वाली नीति या कानून न्यायोचित हो सकता है, बशर्ते ऐसा आवंटन अनुच्छेद 14 के दायरे में हो।
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