आयुष संचालक व सीजीएमएससी एमडी समेत 3 अफसरों पर केस दर्ज
आयुष विभाग ने सरकारी संस्था को छोड़ निजी संचालकों से दवाईयां खरीदने पर राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने तीन अफसरों पर केस दर्ज किया है। इसमें आयुष संचालक इफ्फत आरा, संयुक्त संचालक सुनील कुमार दास और सीएमएससी एमडी पद्मिनी भोई शामिल हैं। बता दें कि इन तीनों पर पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर ने आरोप लगाते हुए एसटी आयोग में शिकायत की थी कि निजी कंपनियों को लाभ देने के लिए इन्होंने सरकारी संस्था संजीवनी से दवाइयां नहीं खरीदीं। जबकि मुख्य सचिव का आदेश है कि जो दवाएं स जीवनी में न मिले उन्हें ही निजी दवा निर्माताओं से खरीदा जाए।
केस दर्ज होने के बाद मुख्य सचिव अमिताभ जैन ने तीनों से जवाब मांगा है। बता दें कि पिछले तीन साल में आयुष विभाग ने 43 करोड़ की खरीदी में संजीवनी से सिर्फ 5.76 करोड़ की दवाएं ही लीं। शिकायत होने के बाद विभाग ने अब आनन-फानन में संजीवनी से दवाएं खरीदना शुरू कर दी है। अब तक 3.93 करोड़ की दवाएं खरीदीं जा चुकी हैं। नियम आने के बाद आयुष ने 2022-23 में 12.64 करोड़ की दवाएं खरीदीं, इसमें संजीवनी से 1.73 करोड़ की दवाएं खरीदीं गई। अगले साल 18.76 करोड़ की दवाओं में से सिर्फ 9 लाख की दवाएं ही संजीवनी से खरीदी गई। 2024-25 में अब तक 11.51 करोड़ की दवाएं खरीदी जा चुकी हैं, इसमें संजीवनी से 3.93 करोड़ की दवा ली गई है।
पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर ने आयोग को लिखा था कि छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल्य राज्य है। आदिवासियों जीवनयापन के लिए लघुवनोपज का संग्रहण कर विक्रय करते हैं। उनसे सबसे अधिक खरीदी सरकार ही करती है। ऐसे में सरकारी दवाएं नहीं बिकेंगी तो आदिवासियों का जीवनयापन प्रभावित होगा। इसे देखते हुए ही कैबिनेट में संजीवनी से खरीदी करने का निर्णय लिया गया। निजी कंपनियों से दवाएं खरीदने की वजह से आदिवासियों का जीवन प्रभावित हो रहा है। इसलिए आयोग ने इस मामले को संवेदनशील मानते हुए दो आईएएस पर केस दर्ज कर दिया।
तर्कः आयुष विभाग के अधिकारियों ने बचाव में यह बात मुख्य सचिव को बताई है कि वे 124 तरह की दवाएं खरीदते हैं। इसमें से संजीवनी में सिर्फ 14 दवाएं ही मिलती हैं।
सचः च्यवनप्राश, सितोपलादी जैसी 14 दवाएं संजीवनी से मिलती हैं, जिसकी खपत से अधिक होती है। अगर ऐसा है तो अचानक 4 करोड़ की दवाएं छह महीने में कैसे खरीदी गईं।
आरोपों पर सीधे सवाल और उनके जवाब
- इफ्फत आरा, संचालक, आयुष
आरोप- आप सीधे संजीवनी से दवा व खरीद सकती थी। मुख्य सचिव के आदेश की अवेहलना क्यों की?
जवाब- हमने सबसे अधिक दवाएं संजीवनी से खरीदी हैं। 2024-25 में अब तक 3.93 करोड़ रुपए की दवाएं खरीदी जा चुकी हैं। ये दवाएं निजी कंपनियों से महंगी हैं, इस - वजह से सत्र की शुरुआत में खरीदी नहीं हो पाई थी। बाद में संजीवनी में मिलने वाली हर दवा की ही खरीदी की जा रही है।
- सुनील दास, संयुक्त संचालक, आयुष
आरोप- आपने संजीवनी में मिलने वाली दवाओं की डिमांड सीजीएमएसी को क्यों दी?
जवाब- हम 124 प्रकार की दवाओं को खरीदते हैं। संजीवनी में सिर्फ 14 दवाएं ही मिलती हैं। पहले तो 9 ही मिला करती थीं। इस वजह से बाकी दवाएं सीजीएमएससी से खरीदी गई। पिछले साल कुछ कम दवाएं खरीदी गई थीं, लेकिन इस साल सबसे अधिक दवा संजीवनी से खरीदी गई हैं।
- पद्मिनी भोई, प्रबंध संचालक, आयुष
आरोप- सीजीएमएसी ने उन दवाओं को भी खरीदा जो संजीवनी में मिल रही थी?
जवाब- सीजीएमएससी को जो भी विभाग डिमांड भेजता है, हम उसकी खरीदी करते हैं। अपनी तरफ से हम किसी दवा का नाम नहीं जोड़ते। अब आयुष विभाग ने हमें जो डिमांड भेजी, हमने उन्हीं दवाओं को भंडार क्रय नियम के तहत खरीदा। अब उनकी क्या गाइडलाइन है, यह तो उन्हें देखना चाहिए।
2021 में आया था आदेश | 25 फरवरी 2021 को कैबिनेट की बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा बनीं आयुर्वेदिक दवाओं और हर्बल उत्पादों को सरकारी विभाग सीधे खरीद सकते हैं। 24 जनवरी 2022 को मुख्य सचिव अमिताभ जैन ने इसे सख्ती से पालन करने के निर्देश दिए थे। साथ ही संजीवनी को सरकारी खरीदी पर 10 प्रतिशत छूट देने को भी कहा गया था।
Comments